Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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होली कुण्डलिया

 

 

चोली भीगी प्रेम से, उड़ता लाल गुलाल.
सिकुड़ी जाए लाज से, राधा लालमलाल.
राधा लालमलाल, गोपियाँ मन हर जायें
नतमस्तक रति-काम, कन्हैया रास रचाएं.
पिचकारी दे रंग, भरे सिसकारी टोली.
प्रमुदित मन मनमीत, उठे रह-रह के चोली..

 

 

राधा रंगों में रँगी, दूर हुआ अभिमान.
मन वृन्दावन हो गया, सुन वंशी की तान.
सुन वंशी की तान, प्रकृति प्रमुदित हो जाये.
पिचकारी दे प्रेम, पर्व यह सबको भाये.
साधे लाल गुलाल, दूर हो दुविधा बाधा.
बने कृष्णमय रूप तभी मोहित हो राधा..

 

बाबा बौराए फिरैं, दादी हों मधुमास.
ताऊ ताई झूमते, अद्भुत है उल्लास.
अद्भुत है उल्लास, रंग होली का मादक.
बाल वृन्द नर-नारि, स्नेह शुचिता आराधक.
करें प्रीति रस वृष्टि, भीगते काशी काबा.
चढ़ी प्रेम की भांग, मगन मन झूमें बाबा.

 

 

होली हरि रँग में रँगे, अति पवित्र यह पर्व.
एक सूत्र में जोड़ता, इस पर हम को गर्व..
इस पर हमको गर्व, हृदय हृदयों से मिलते.
राग द्वेष हों नष्ट, भाव शुचिता के खिलते.
सभी सनातन भ्रात, वैश्विक अपनी टोली.
करें स्नेह व्यवहार, सार्थक तब हो होली..

 

 

रचनाकार : इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

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