मन चातक यह कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
चरणों में तेरे बसते है, जग के सारे धाम............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
नगर अयोध्या में तुम जन्मे, दशरथ पुत्र कहाये,
गुरु थे विश्वामित्र तुम्हारे, कौशल्या के जाये,
ऋषि मुनियों की रक्षा करके, धन्य किया है नाम ..........२
वाल्मीकि, तुलसी से साधक, जपें निरंतर नाम. ............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मन चातक यह कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
मित्र संत सुग्रीव तुम्हारे, केवट-शबरी साधक,
भ्रात लक्ष्मण साथ तुम्हारे, राक्षस सारे बाधक,
बालि व रावण को संहारा, सौंपा अपना धाम ...........२
था जटायु सा मित्र तुम्हारा, आया रण में काम ............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मन चातक यह कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
शिव जी ठहरे साधक तेरे, हनुमत भक्त कहाते,
जिन पर कृपा तुम्हारी होती वो तेरे हो जाते,
सभी भक्तजन रहें शरण में, मिले तुम्हारा धाम ...........२
जग में हम सब चाहें तुझसे, भक्ति हृदय में राम ............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मन चातक यह कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
मोक्ष-आदि क्या तुमसे माँगूं , कर्मयोग तुम देना,
जब भी जग में मैं गिर जाऊँ, मुझको अपना लेना,
कृष्ण, कल्कि प्रिय रूप तुम्हारे, परमब्रह्म है नाम ............२
प्रतिक्षण करूँ वंदना तेरी, भाव मुझे दो राम ............
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मन चातक यह कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
चलता जो भी राह तुम्हारी, जग उसका हो जाता,
लव-कुश जैसे पुत्र वो पाए, भरत से मिलते भ्राता,
उसके दिल में तुम बस जाना जो ले तेरा नाम .........२
भक्ति भाव में अम्बरीष ये, करता तुम्हें प्रणाम ..........
जय-जय राम सीताराम, जय-जय राम सीताराम.........२
मन चातक यह कब से प्यासा, दर्शन दे दो राम,
चरणों में तेरे बसते है, जग के सारे धाम............
जय-जय राम सीता राम जय-जय राम सीता राम………
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रचनाकार: इन्जी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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