Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कविता

 

अभावों में बीता हो शैशव,
बचपन भी हो द्वंद भरा |
युवावस्था संघर्ष भरी हो ,
कविता उपजे उसी धरा ||


व्यंग्य ओज अलंकार हैं इसके,
अंतर्मन को छू जाती |
इतनी शक्ति पाई इसने ,
जड़ तक को चेतन कर जाती ||

करुणा ममता दया दृष्टी से,
हर प्राणी को अपनाए,
क्रूर ह्रदय हो चाहे कितना,
उसको राह पे ले आए |

भीगी पलकें भीगा दामन,
सुलगती सांसे दहकती छाती |
विरह अग्नि होठों पे आह ,
कविता वहाँ जनम है पाती ||

कवि की रचना तथ्यपरक हो,
फूंके वो जन-जन में प्राण |
संयमित होकर कलम उठाये,
उद्देश्य हो उसका जग-कल्याण||

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