“बड़े ही धागे कच्चे”
सच्चे
रिश्ते में रहे, अपनापन ही पास.
धड़कन जोड़े
रूह से, जुड़े साँस से साँस.
जुड़े साँस
से साँस, जहाँ हो दिल से नाता.
समझे मन की
बात, वही दिल को अपनाता.
अम्बरीष यह
सत्य, बड़े ही धागे कच्चे.
जुड़ता जब
विश्वास तभी हों साथी सच्चे..
“तभी हो निर्मल
गंगा”
गंगा में
है तैरता, मन में पावन
भाव.
मैली माता
हो चलीं, जाने नहीं
प्रभाव.
जाने नहीं
प्रभाव बना कचरा बीमारी,
इससे बन
अनजान देखती दुनिया सारी,
अम्बरीष
कविराय भले हो जग से पंगा,
करो
प्रदूषण मुक्त तभी हो निर्मल गंगा.
“रहे धरती ना खाली”
हरियाली
शहरी यहाँ बरखा नहीं सुदूर.
किसकी राह
निहारता सुन्दर मस्त मयूर..
सुन्दर मस्त
मयूर सभी के मन को मोहै,
सतरंगी
परिधान उसी के तन पर सोहै.
अम्बरीष की
बात रहे धरती ना खाली.
मिलकर करें
प्रयास तभी हो ये हरियाली..
"हाथ रिक्शावाला"
पहिया
बनकर ढो रहा, सारे जग का भार |
नंगे
पावों दौड़ता, बहे स्वेद की
धार |
बहे स्वेद
की धार, रीति जो इसने
मानी |
मानवता का
खून, हुआ है कब से
पानी |
कर्मवीर
गंभीर, नहीं ये सुखिया
दुखिया |
बेपर्दा
संसार, देखता चलता पहिया ||
“चिंतित दीखै मोर”
हरियाली है
नाम की, कंकरीट का जोर .
मानव यह
क्या कर रहा, चिंतित दीखै मोर..
चिंतित दीखै
मोर , कहाँ हैं अपने
जोड़े?
होने को हम
लुप्त, बचे वैसे ही
थोड़े.
विकल रो रहा
हंस, बची धरती ना खाली.
कहने को
बरसात, बची थोड़ी
हरियाली..
“नहीं है कोई जरिया”
दरिया के तीरे यहाँ, देख
अजब यह मेल.
ऊपर झीना आवरण, खुलेआम
यह खेल.
खुलेआम यह खेल, दिखे सबको हरियाली,
कहलाते निर्लज्ज, रवानी
मौजों वाली.
अम्बरीश कह आज, नहीं
है कोई जरिया,
मंजिल ऊँची बीच, बड़ा
जो भारी दरिया..
“सभी जन झूमें भाई”
भाई बंधन में बंधा, सफल हुआ यह काज.
सबसे हर्षित है बहन, चले उसी का राज.
चले उसी का राज, बड़ी प्यारी है भाभी,
आयी ले ससुराल, सभी खुशियों की चाभी,
अम्बरीष भी आज, मगन हैं खुशी जो छाई,
प्यारी जोड़ी देख, सभी जन झूमें भाई .
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