समसामयिक कुण्डलिया
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लड़ते हैं गोमांस पर, भक्षक, श्वान सियार.
गिरफ्तार रक्षक करे, भ्रमित वही सरकार?
भ्रमित वही सरकार, 'बीफ' दे जिसे सहारा.
इसको पशु-बलि मान, नही सद्भावी धारा.
देख पाशविक कृत्य, शर्म से मानव गड़ते.
ओढ़ सेक्युलर खाल, भ्रात जब पशुवत लड़ते..
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कहलाते है बौद्धिक, जग में हैं विख्यात.
पुरस्कार लौटा रहे, वाह वाह क्या बात.
वाह वाह क्या बात, भावना प्रेम पगी है.
मित्र भले निष्णात, लेखनी जंग लगी है.
दीन-दुखी को देख, घाव मन के सहलाते.
दिल से लिखते दर्द, बौद्धिक तब कहलाते..
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जल-दोहन अब मत करें, नहीं चलेगें पम्प.
नित्य हो रही फाल्ट है, जिससे हों भूकम्प.
जिससे हों भूकम्प, झेल पायेगें कैसे.
सावधान हों मित्र, खेल खेलें मत ऐसे.
रिमझिम हो बरसात, मुदित होते मनमोहन.
जल संचय हो नित्य, भूलिए भू जल-दोहन..
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रचनाकार: इन्जी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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