प्रयुक्त भाषा: अवधी
शिल्प शोध:
स्थायी: चामर छंद (गुरु के स्थान पर दो लघु व गुरु का लघुवत उच्चारण)
ना र ना/ र ना र/ ना र ना/ न ना र/ ना र ना
राजभा/जभान/राजभा/जभान/राजभा
अंतरा: लगभग लावनी छंद (१६, १४ मात्रा अंत गुरु से)
अथवा कुकुभ छंद (१६,-१४ मात्रा अंत दो गुरु से)
(पूर्व प्रचलित लहचारी में गुरु के स्थान पर दो लघु का प्रयोग
व गुरु का लघुवत उच्चारण देखा गया है)
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अवधी लोक-गीत सिगरे है, बिलाइ गे कहाँ,
उनका लाउ ढूँढ़ि कै.
अवधी लोक-गीत सिगरे है.........
बेला, बिरहा, बारामासा, कजरी, ठुमरी, सुर गारी.
बिरहा अरु निरवाही, सोहर, सावन, बरुवा, लहचारी.
पचरा, भजन, टहकरा, आल्हा, पंडाइन, गोपीचंदा.
पाटन, टूम, गर्जना, सावन, बेला, चैती, रस छंदा.
भौजी भूलि-भूलि डगरे हैं रिसाइ गे कहाँ,
उनका लाउ ढूँढ़ि के..
अवधी लोक-गीत सिगरे है.........
खाय गयी पच्छिमी सभ्यता, संसकार हुइगे खोटे.
राम-राम अपराधु हुइ गवा, कपड़ा तक हुइगे छोटे.
मोबाइल पर बाजै गाना, हलो-हाय सबका भावै.
देखि-देखि निर्द्वन्द वीडिओ, पागल जियरा ललचावै.
रिश्ते नाते बंधु हमरे हैं भुलाइ गे कहाँ,
उनका लाउ ढूँढ़ि कै..
अवधी लोक-गीत सिगरे है.........
हुड़ुक, गवनही, लिल्ली घोड़ी, मोरबीन अरु शहनाई.
घूँघटमय दुलहिनिया डोली, पनघट खोई अमराई.
बाँसुरिया गुम गगरी गायब, मटका वादन रोइ गवा.
गुम हुइ गइ है चाक व चकिया, गाली-मूसल खोइ गवा.
कुश्ती खो-खो खेल सारे उइ गँवाइ गे कहाँ
उनका लाउ ढूँढ़ि कै..
अवधी लोक-गीत सिगरे है.........
रचनाकार: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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