Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मगन हो नाचे जंगल..

 

 

छंद कुण्डलिया

 

 

जंगल में अंधेर जब. होगा चौपट राज.
बने विदूषक सिंह ही, उल्लू अब सरताज.
उल्लू अब सरताज. हाथ आई फिर टोपी.
देखे मीठे स्वप्न, हंसिनी होगी गोपी.
सफल हुए हैं खेल, हुई कुश्ती भी, दंगल.
झूमें रँगे सियार, मगन हो नाचे जंगल..

 

 

इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर

 

 

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