महिलाओं का दिवस मित्रवर एक रोज क्यों आता है.
नारी बिना न चलता जीवन सदा सर्वदा नाता है.
सृष्टि रची जब ब्रह्माजी ने, सब कुछ था निष्प्राण वहाँ.
बिन प्रवाह थीं सारी नदियाँ, सागर तक था शांत यहाँ.
सरस्वती ने जब सुर छेड़ा, झंकृत वीणा तार किये.
जीवन सरिता हुई प्रवाहित, जीवित हो तब सभी जिये.
शक्ति साधना पुरुष करे जब, तब ही वह फल पाता है.
नारी बिना न चलता जीवन, सदा सर्वदा नाता है.
बहुत भाग्य से मिलती भगिनी, भाई बनकर प्यार करें.
मातु सुता या बने संगिनी, कभी न अत्याचार करें.
उसके आँचल की छाया में, मन को शीतल छाँव मिले.
निर्विकार हो जाता तन-मन, श्रद्धानत हो हृदय खिले.
नारी का हर रूप सौम्य है, पावन हमें बनाता है.
नारी बिना न चलता जीवन, सदा सर्वदा नाता है.
त्याग तपस्या करुणा ममता, शुद्ध स्नेह संसार बनी.
शौर्य पराक्रम धैर्य धारती, प्रकृतिरूप आकार बनी.
नारी का सम्मान नित्य कर, जीवन में नव रंग भरें.
सहयोगी हों हम सब उसके, सतत स्नेह सत्कर्म करें.
सहज प्रेम विश्वास समर्पण, हमको यही सिखाता है.
नारी बिना न चलता जीवन, सदा सर्वदा नाता है.
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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