'मैं' मैं मैं का जाप ही, नित्य कीजिए मित्र.
सुख पायें संतुष्टि हो, मनभावन यह इत्र.
मनभावन यह इत्र. इसे जो नित्य लगाये.
वही लगे सिरमौर, आम को ख़ास बनाये.
पगड़ी मैं की बाँध, मगन मय चखिये मैं मैं..
सब पी हों मदमस्त, आप मत करिए मैं 'मैं'..
रचनाकार: इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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