मानव मानव से मिले, करे सहज सत्कर्म.
प्रेम स्नेह हो विश्व में, यही धर्म का मर्म.
यही धर्म का मर्म, किन्तु कुछ लोग भ्रमित हैं.
तोड़फोड़ है वृत्ति, उन्हीं से, अन्य त्रसित हैं.
यदि कुसंग कुविचार, बसेगें मन में दानव.
रखें सनातन भाव, बनेंगे मानव, मानव.,
---इन्जी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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