Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

मुफ्ती और मसर्रत

 

मुफ्ती और मसर्रत की अब यारी रिश्तेदारी है,
इस्लामिक हो काश्मीर अब, कोशिश है तैयारी है.
लहू चूसकर जिस धरती का दोनों जीते मरते हैं,
उससे ही गद्दारी करते जोंक सरीखे लगते हैं.

 

 

पाकिस्तानी झंडा रखते, घाटी में लहराते हैं.
मां का आँचल जान तिरंगा, जो गद्दार जलाते हैं.
आई० एस० एजेंन्ट बने हैं, वो ही सारी घाटी में.
साफ़ किये कश्मीरी पंडित, मिला दिए हैं माटी में.

 

 

गद्दारी नस-नस में बहती, खानदान पहचाना है
कबायली हमला जब देखा, तब से सबने जाना है
ले हथियार मिले जा पुरखे, जिससे लड़ने भेजा था.
चूर चूर कर डाला उसको जो विश्वास सहेजा था.

 

 

मुस्लिम रेजीमेट कहाँ है नेताजी ने पंक्ति पढी.
रेजीमेट बना तो देते, गद्दारी की भेंट चढ़ी.
पहले चार दमादों को बेटी के बदले छुड़वाया.
आज पाँचवां बना मसर्रत, रिहा उसे भी करवाया.

 

 

उन सबको भी रिहा करेगें, बंद अभी जो जेलों में.
शामिल जो पत्थरबाजी में, कत्लगाह के मेलों में.
पोषक हैं अलगाववाद के दिल ही पाकिस्तानी है.
पाकिस्तान मिनी कहते हैं, इसमें क्या हैरानी है.

 

 

चाहे कितना दूध पिला दो, ये समझेगें पानी है
टेढ़ी चाल चलेगें मिलकर, इसमें क्या हैरानी है.
धोखेबाजी पत्थरबाजी, आदत है परिपाटी है.
इनसे ही धरती की जन्नत, अब आतंकी घाटी है.

 

 

खून वतन का खौल रहा है, अब काली करतूतों पर.
कोई भी अभियोग लगा दो, इन बेशर्म कपूतों पर.
समझौते की नीति छोड़कर, मोदी जी इन्साफ करों.
या तो इनकी गर्दन बाँधो, या फिर मकसद साफ़ करो......

 

 

अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ