निहायत शर्मनाक व
मानवता के नाम पर कलंक
(बुलंदशहर गैंगरेप काण्ड)
हर कदम पर हैं दरिन्दे, चूस लेते जो लहू.
सो रहे रहबर सिपाही उनसे क्या हो गुफ्तगू.
आबरू है लुट रही परिवार बेबस देखता,
अब नहीं कोई सुरक्षित बहन बेटी या बहू..
ध्वस्त है सारी व्यवस्था आस उससे छोड़ दो.
बढ़ रहे जो हाथ शातिर लो पकड़ बस तोड़ दो
दो सजा ऐसी कि उफ़ तक कर न पायें वे कभी ,
चल रही हैं आँधियाँ जो रुख पलटकर मोड़ दो..
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’
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