Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

 

 

अँधियारे का पक्ष, भाद्रपद शुभ अष्टमी,
बंदीगृह का कक्ष, जगमग आलोकित हुआ..

 

धरि शिशुरूप सहज हो नाता. सम्मुख विष्णु उपस्थित माता..
नतमस्तक वसुदेव देवकी. स्वीकारें हरिरूप सेवकी..
लीलाधर हैं भाग्य विधाता. बंधनमुक्त हुए पितु-माता..
सुप्त अवस्था में सब प्रहरी, थी सम्पूर्ण व्यवस्था बहरी..
मनमोहक शिशु किलकत भावै, अपलक दृष्टि मातु सुख पावै..
आसन सूप शीश धरि हरि को. तब वसुदेव चले गोकुल को..
दर्शन करि सब देव सरसते. मुदित मेघ घनघोर बरसते..
यमुना पार मगन मन जाना. शेषनाग फन छतरी ताना..
हरि चरनन की प्यासी यमुना. मुदित बढ़ें डूबन को नथुना.
यह लखि कान्ह पाँव लटकावा. पद पखारि जल नीचे आवा.
गोकुल नन्द धाम में माया. अदला=बदली धर्म सुहाया..
ले कन्या बंदीगृह आये. पुनि सब बंधन वापस पाये..

 

कंस आगमन तब हुआ. कन्या छीने दुष्ट.
पटका पत्थर पर तभी, हुई देवकी रुष्ट..
आसमान में जा उड़ा, माया का वह रूप.
जन्मा तेरा काल है, दुष्ट निर्दयी भूप..

 

घनघोर घन घिरि दामिनी संग, मेघ पुनि वर्षित हुए.
लखि रूप मोहन माँ यशोदा नन्द सब हर्षित हुए.
हरि सांवरे बन कान्ह किलकत भाग्य गोकुल का खिला.
शुचि प्रियतमा राधा सहित है आज सुख सबको मिला..

 

मने कृष्ण जन्माष्टमी, जपूं कृष्ण का नाम.
नतमस्तक होकर उन्हें, कोटिश करूं प्रणाम

 

 

रचनाकार--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

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