हरिगीतिका छंद:
स्तुति...
ऋषि धर्मवंशी भृगु सुधन्वा अंगिरा कुल शोभितं|
हरिचक्र पुष्पक शिवत्रिशूलं आयुधं अभिकल्पितं|
शुचि स्वर्ग लंका द्वारिका पुरइन्द्रप्रस्थं निर्मितं,
विधु विश्वकर्मा, विधिविराटं पञ्चमुख प्रभुपूजितं||
छंद रचनाकार:
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
(भावार्थ: समय-समय पर अपने विभिन्न अवतारों में विश्वकर्मा पद पर प्रतिष्ठित रहे ऋषि धर्मवंशी, भृगु, सुधन्वा, अंगिरा, के कुल को सुशोभित करने वाले व भगवान् विष्णु का सुदर्शन चक्र, पुष्पक विमान, भगवान् शिव का त्रिशूल जैसे प्रमुख हथियारों के डिजाइन व निर्माण करने वाले तथा पवित्र स्वर्ग, स्वर्णनिर्मित लंका व इन्द्रप्रस्थ जैसे वृहद् महानगरों की महायोजनाओं के प्रणेता भगवान् विश्वकर्मा के विधिप्रदत्त पंचमुखी विराट शाश्वत प्रभुरूप का हम इस सम्पूर्ण हृदय से पूजन, वंदन अर्चन करते हैं |)
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