Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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पावस ऋतु

 

पावस ऋतु
प्रियतम की आस
मन मयूर
आने को फिर
ठंडी ठंडी फुहार
झूमते वृक्ष
भीगा आँचल
चितचोर मौसम
बिहंसे मन
पक्के हैं टैंक
पानी से लबरेज
छोटे मगर
चतुर्दिक दृश्य
भवनों के जंगल
बहुमंजिले
लगता हंस
बगुला या भगत
दिल में चोर
बसेरा कहाँ
अब नहीं जंगल
चिंतित मोर
सुंदर तन
बदसूरत पाँव
वाह रे भाग्य
स्वार्थ में अँधा
आखिर कब तक
यह इंसान

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