Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

पाँच कुंडलिया

 

१ (बालिका की नज़र से)

फोटो खींचा खींच लो, जानूं नहिं क़ानून.

मैं तो फ़र्ज़ निभा रही, मेरा देख ज़ुनून.

मेरा देख ज़ुनून, घूरते लोग अचम्भा.

साफ़ करूं वह छोर, दूर जहँ अंतिम खम्भा.

बीस मिनट का काम, काम नहिं कोई खोटो.

लूं फिर बस्ता पीठ, खींचते रहना फोटो..


३ (विवशता)

बापू खटिया पर पड़े, भैया जाते झेल.

मैया को भी वायरल, साहब कसे नकेल.

साहब कसे नकेल, उठा ली हमने झाड़ू.

होगा कचरा साफ़, भले हो आँख लताड़ू.

कर लो चाहे फोन, बजा लो चाहे भोंपू.

हम भी हैं मजबूर, पड़े खटिया जो बापू..


२ (पड़ोसी)

मैया किये दुकान है, बापू पिए शराब.

भाई तक खेले जुआँ, है माहौल खराब.

है माहौल खराब, बहन घर चूल्हा फूँके.

करो शिकायत साब, कुड़ी नाबालिग़ है के.

झाडू मारे रोज, निकम्मा इसका भैया.

कर्जे में परिवार, चलाती घर है मैया..


४ (क़ानून)

पट्टी आँखों पर बँधी, हम तो हैं कानून.

बिना गवाही मौज हो, भले खून दर खून.

भले खून दर खून. लोग क़ानून उखाडू.

धाराएँ बहु एक, लगाते सब पर झाड़ू.

मजबूरी जो आज, जानते यद्यपि बेट्टी

फिर भी हम मजबूर, उतारें कैसे पट्टी..


५ (फोटोग्राफर)

फोटो हमने खींच ली, यहाँ व्यवस्था देख.

झाड़ू मारे बालिका, लिखना इस पर लेख.

लिखना इस पर लेख, बोलती जो लाचारी.

धुँआ-धुँआ क़ानून, पढ़े कैसे बेचारी.

'अम्बरीष' का चित्र, शिकायत करता छोटो.

कुछ तो सुधरें लोग, देखकर ऐसी फोटो..

 

 

 

 

--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव

 

 

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ