भारत वर्ष की धरती पर, प्रभु ने षष्ठम् अवतार लिया |
भक्तों की रक्षा करने को, पुरुषोत्तम ने फरसा थाम लिया ||
त्रेता युग में थे तुम जन्मे, भृगु के पौत्र कहाये थे |
जमदग्नि-रेणुका के तुम जाये, ऋषि-कुल में तुम आये थे ||
प्रसेनजित के पुण्य थे पाए, साक्षात् शिव से फरसा पाया,
कामधेनु का दुग्ध पिया था, माँ के आँचल की थी छाया |
कामधेनु का दर्शन करके, हैहय-नरेश था ललचाया |
ऋषि के ना करने पर उसने, कामधेनु का हरण कराया ||
पुरुषोत्तम लौटे जब आश्रम, कृतवीर्य को था ललकारा |
सहस्त्र भुजाएं काट के उसकी सैन्य सहित उसको संहारा ||
अनुपस्थिति में परशुराम की, अर्जुन-पुत्र था आश्रम आया |
एकांत में ऋषि को पाकर, जमदग्नि का वध करवाया ||
प्रतिशोध में अपने पिता के, हैहय क्षत्रिय सब संहारे |
पापमुक्त कर दिया धरा को, सहस्त्रबाहु गया प्रभु के द्वारे ||
सर्वोपरि है पिता की आज्ञा, युद्ध-नीति विधि ज्ञाता हैं |
प्रभु-भक्त ब्राह्मण समाज के, ये तो भाग्य विधाता हैं ||
शिव-धनुष टंकार सूनी जब, तुरतहिं रक्षा को थे धाये |
सिया-स्वयंवर में थे पहुंचें, सप्तावतार के दर्शन पाए ||
सीता को आशीष दिया, सुख-सौभाग्य सदा तुम पाओ |
श्रीराम संग सदा बिराजो, पतिव्रता तुम सदा कहाओ ||
शिष्य भीष्म और द्रोण तुम्हारे, कर्ण को भी था ज्ञान दिया |
महाभारत काल में तुमने, प्रभु भक्तों को मान दिया ||
ब्राह्मणों की रक्षा में तुमने, सारा जीवन लगा दिया |
आज भी आवश्यकता है तुम्हारी , सबने तुमको याद किया ||
कल्कि पुराण में कहा गया है, प्रभु दशमावतार में आयेंगे |
तुम्हीं गुरु होगे उन प्रभु के, तुम्हीं से शिक्षा पाएंगे ||
भगवन परशुराम की महिमा, जगत में जो भी गायेगा |
सरस्वती की कृपा रहेगी, सदा मान वो पायेगा ||
रचयिता ,
अम्बरीष श्रीवास्तव “वास्तुशिल्प अभियंता“
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