शुचिशंखचक्रं कौमुदीकर पद्मशेषं शोभितं |
गरुणध्वजं अज लक्ष्मीपति वासुदेवं ध्यायितं |
शुभश्रेष्ठतं शृंगार तुलसी शालिग्रामे अच्युतं |
हृदवन्दनं विधुविष्णुरूपं कल्किकृष्णं केशवं ||हरिगी०||
कर्कलग्न शुचि धाम, शुभग्रह सगरे उच्च के|
जन्मे जब श्रीराम. चैत्रशुक्ल शुभ तिथि नवम|| सो०||
बाल रूप हरि दरस सुखारी| हरषित कोसल्या महतारी||
मुख विलोकि मन मोह अपारा| बहे स्नेह पावन पय धारा||
आलोकित सविता मुखमंडल| वात्सल्य प्रस्फुटित कमंडल||
दिव्य वस्त्र शोभित आभूषण| मनभावन शुभ रघुकुलभूषण||
भाल तिलक मनमोहक लोचन| राम नाम मम संकटमोचन||
धन्य-धन्य धरि धरनी माथा | पुनि-पुनि वन्दौं प्रभु रघुनाथा||चौ०||
तीन लोक चौदह भुवन, जग जिनके आधीन|
किलकत जननी गोद में, दशरथ पुत्र प्रवीन||दो०||
सादर,
रचनाकार: इन० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
LEAVE A REPLY