आज फिर रंगों हमें अनंग की तरह,
मन अधीर हो रहा विहंग की तरह |
रंग की फुहार आज रंग डालती,
बालपन में छा गयी उमंग की तरह |
नैन तक झुके है नेह स्वप्न देखकर,
काश वो हों सामने तरंग की तरह |
केमिकल से रंग आज खेलना नहीं,
साथ छोड़ दो सदा कुसंग की तरह |
प्यार से हमें यहाँ लगा लिया गले,
गा रहा है आज मन मलंग की तरह |
मुस्कुराहटें सभी हैं प्रीति से खिलीं
साज बज रहे सभी मृदंग की तरह |
दन्त पंक्ति खिल उठी ज्यों श्वेत हो लड़ी,
मेघ मध्य दामिनी प्रसंग की तरह |
रंग से चुरा लिए हैं रंग आज ही,
बिन पिए ही चढ़ गये है भंग की तरह |
रंग की रंगीली नेह डोर थाम के,
उड़ चला है आज मन पतंग की तरह |
रंग भंग आज वो जो देख लें हमे,
जिन्दगी हो मित्र एक जंग की तरह |
शोहदे भी रंग डाल गाल मल रहे,
क्यों समाज हो गया अपंग की तरह ?
हो गणेश ऋद्धि सिद्धि बुद्धि की कृपा,
शुभ सुगंध विश्व में कुरंग की तरह |
'अम्बरीष' साजना का साथ ही मिले,
अब नहीं दिखे कोई भुजंग की तरह |
रचनाकार: इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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