एक मुक्तक
रवानी देख मौजों की उन्हें अलमस्त बहने दो,
न छेड़ों काम कुदरत का, वही अंदाज़ रहने दो,
दुहाई दे रिवाजों की करो मत नीर को मैला,
पतित पावन भले गंगा उसे अब पाक रहने दो..
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
एक मुक्तक
रवानी देख मौजों की उन्हें अलमस्त बहने दो,
न छेड़ों काम कुदरत का, वही अंदाज़ रहने दो,
दुहाई दे रिवाजों की करो मत नीर को मैला,
पतित पावन भले गंगा उसे अब पाक रहने दो..
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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