Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सहज शृंगार

 

 

ऐ रूपसी सुकोमल, कविता ग़ज़ल सुहानी.
हो स्वर्ग अप्सरा सी, बचपन सुनी कहानी.
छेड़ो न आज फिर से, मन तार बज उठेंगें,
भाये प्रहार चितवन, अल्हड़ लगे जवानी..

 

 

शृंगार रातरानी, चम्पाकली चमेली.
जूही जवाकुसुम सी, बेला लिली सहेली.
मादक सुगंध बिखरे, तन-मन लगा बहकने,
कोमल छुई-मुई सी, हो वल्लरी अकेली..

 

 

श्रीरूप भाव पावन, हर गीत मीत भाये.
वाणी सरस्वती सी, संगीत मन लुभाये.
आवाज़ नित्य खनके, सुर सात आज गूँजें ,
है कामना हमारी, तू साथ-साथ गाये..

 

 

त्यौहार दीप पावन मिलकर यहाँ मनाएं.
मंगल करें गजानन, सुरभित सुमन सजाएं.
श्रीलक्ष्मी स्वरूपा, शुभ ऋद्धि-सिद्धि जैसी,
हो ज्ञानबुद्धि शोभित, दीपक चलो जलाएं..

 

 

रचनाकार
--इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

 

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