साई प्रतिमा मध्य में, उनका है दरबार.
साइड शिवजी रामजी, सजे देवता चार.
सजे देवता चार, मित्र मंदिर कहलाये.
माँ दुर्गा का साथ, भक्ति का भाव बनाये.
देवों का क्या काम, संत-कुटिया यह भाई.
मित्र स्वयं को जान, तभी हर्षित हों साई.
दुर्गा मंदिर में मिले, शिवजी का परिवार.
दूजे में हनुमानजी, सियाराम का द्वार.
सियाराम का द्वार, सभी में शोभित साई.
मगन पुजारी मस्त, टेंट में लक्षमी आई.
सफल एक षड़यंत्र, नित्य अब कटना मुर्गा.
मंदिर या दरगाह?, व्यथित प्रभु, शिवजी, दुर्गा..
बाबा मुस्लिम हैं कहाँ?, पूजित हिन्दू जान.
कहते साईभक्त हैं, सच्चा साईं ज्ञान.
सच्चा साईं ज्ञान, वेश मुस्लिम सा भाई.
मसजिद नित्य निवास, द्वारिका नामित माई.
पकता पाक प्रसाद, पाक सब राबा-ढाबा.
पाक चाँद दीदार, पाक मन साई बाबा..
साई मंदिर हों अलग, कहें शंकराचार्य.
बने विरोधी भक्तगण, कहते उन्हें अनार्य.
कहते उन्हें अनार्य, और अपमानित करते.
बुद्धि-शुद्धि उद्योग, देख लेगें, दम भरते.
नागा, सब तैयार, भयंकर, भागो भाई.
धर्मयुद्ध आसार, बचा लें शिवजी, साई..
करते व्यर्थ विवाद हैं, चुभा रहे विषदंत.
हिन्दू-मुस्लिम से परे, साई ठहरे संत.
साईं ठहरे संत, नहीं भगवान् बनाओ.
आत्मसात कर नीति, संत का मान बढ़ाओ.
भौतिक है प्रिय मूर्ति, नित्य सब जीते मरते.
ईश्वर केवल एक, उसे सब पूजा करते..
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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