Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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समर्पण हरिगीतिका छंद

 

शुचि काव्य रस गंगा प्रवाहित भावना हैं धार हैं.
सुर-ताल लय लालित्य निर्मल नादमय संसार हैं.
नतशीश 'अम्बर' श्रीचरण में सामने साकार हैं,
प्रभु आप ही अपने सृजन के प्राण हैं आधार हैं..

 

 

 

इं० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

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