Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शहीदों के लहू का वो…..

 

सब भूल गया आज खिली ये बहार है ........
है गर्दिशे नसीब चली जो बयार है ..............

शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है
लिखी है हमने आजादी इबारत खूँ के कतरों से
मिटाने को उसे भी हम लगे हैं नाज़ नखरों से
बहुत दिल पर चले आरे दोबारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है

शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है

हमी दुश्मन हैं अपनों के खुदी पे वार करते हैं
लगाते घाव अपनों को नहीं वो प्यार करते हैं
मिटा डाला वो अपनापन बेचारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है

शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है

अभी भी कुछ न बिगड़ा है संभल जाओ मेरे भाई
नशा दौलत का छोडो अब चले आओ मेरे भाई
न खेलो खेल खुदगर्जी, सहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है

शहीदों के लहू का वो फुहारा याद आता है
वो मंजर याद आते हैं नज़ारा याद आता है

 

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