नयनों में अश्रुधारा, मन में कुँवर कन्हाई.
इन आँसुओं से हरि ने, यमुना तरल बहाई.
बढ़ता है पाप जब-जब, तब-तब धरा ये रोती;
श्रीकृष्ण जन्म लेते, सबको हृदय बधाई..
असुरों को भेजता नित आतंक पल रहा है.
रह-रह के फूटें ग्रेनेड, हमको ये खल रहा है.
कर बुद्धि को सुदर्शन, इन सबको ख़ाक कर दो;
यह काम कंस का है कश्मीर जल रहा है..
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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