साथ कोई न होगा न तन जायगा,
मन अकेला चला छोड़ धन जायगा.
मन हमारे तुम्हारे मनन कर रहे,
साथ क्या ढाई गज का कफ़न जाएगा.
सुर समर्पित सुकोमल सृजन को करो,
प्रीति का पर्व मन में ही मन जायगा.
लोग मिलते बिछड़ते रहेंगें सदा,
आप होगें युवा बालपन जायगा.
आस में अधखुले जो अधर हैं तेरे,
प्यास उनकी बुझा कर ये घन जायगा.
चार दिन चाँदनी बन के जो तुम रहो,
चौथ का चाँद पूनम का बन जायगा.
मेघ 'अम्बर' मुदित मन बरसने लगे,
एक तन-मन बने खिल सुमन जायगा.
रचनाकार :
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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