इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
गीत
'तुम्हें चाहता हूँ'
सखा बन रहो अब यही माँगता हूँ
तुम्हीं लक्ष्य मेरा तुम्हें चाहता हूँ
मुझे जब मिलोगे यही तो कहूँगा
तुम्हारे बिना मैं कहाँ चल सकूँगा
थमा पग अभी है रुका ही रहूँगा
स्वयं से अगर मैं रहा भागता हूँ
तुम्हीं लक्ष्य मेरा तुम्हें चाहता हूँ
सखा बन रहो......................
हृदय जो सनातन कमलदल खिले हैं
सुरों से बँधा हूँ असुर क्यों मिले है
सदा कष्ट देते तदपि वे खिले हैं
नहीं मित्र सोया रहा जागता हूँ
तुम्हीं लक्ष्य मेरा तुम्हें चाहता हूँ
सखा बन रहो......................
तड़पते हृदय को न मैंने सँभाला
बहुत मंदिरों में तुम्हें खोज डाला
न पाया तुम्हें था मिली मात्र माला
बसे हो हृदय में नहीं जानता हूँ
तुम्हीं लक्ष्य मेरा तुम्हें चाहता हूँ
सखा बन रहो......................
--इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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