फसलें पानी में गयीं, आहत आज किसान.
जन समूह के सामने, गँवा रहा है जान.
गँवा रहा है जान, किन्तु नेता तो नेता.
इस पर रोटी सेंक, लाभ, भाषण दे, लेता.
हों विरोध स्वर साथ, हाथ यदि घर से निकलें.
नहीं रहे छल छंद, उगेगीं सच की फसलें.
झाड़ू फंदा हाथ में, राजनीति का खेल.
चारा बना किसान यह, हुआ मौत से मेल.
हुआ मौत से मेल, बुद्धि इसकी चकराई.
फंदे में नादान, व्यर्थ ही जान गँवायी.
स्वार्थ लोभ की नीति, न समझे आँख लताड़ू.
जिसको समझा बाप, उसी ने दे दी झाड़ू..
इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अबर'
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