Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वंदना के स्वर

 

निकलें मुख से जन्मते, माँ माँ के ही बोल.
पयधारा के पान हित, माँ दे आँचल खोल.
माँ दे आँचल खोल, तृप्त शिशु निद्रा आये.
मीठी लोरी स्नेह, कोकिला उसे सुलाये.
सहज मिले वात्सल्य, चरण रज प्रतिपल ले लें.
माँ मंदिर साक्षात्, वंदना के स्वर निकलें.

 

 

 

इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

 

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