एकता का नाम लेकर जाति, गुट, व्यापार से.
नित चुनावी रैलियाँ अब हो रहीं अधिकार से.
है गज़ब संवेदना, पर स्वार्थी मन क्या करे,
भगदड़ों में लोग कुचले जा रहे हैं भार से..
मोह माया का छँटा जन-जन मुलायम हो गया.
जब हुई जनता भ्रमित आकर प्रकट यम हो गया.
वेदना से हो व्यथित निर्दोष नाहक ही मरे,
मन हुआ आदित्य, योगी, दूर सब तम हो गया..
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--अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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