क़त्ल जवानों का क्यों करते? छोड़ो राजनीति का राग,
नीति-नियंता अब तो जागो, लगी हुई है घर में आग.
सेक्युलरों सॅंग बने मदारी, खेल रहे जो मारक खेल,
सैनिक बन विषहीन सर्प से, झेल रहे विषधर बेमेल.
जिन पर पत्थर बरस रहे हैं, बाँधे क्यों हो उनके हाथ,
अंग-अंग होता विदीर्ण है, फोड़ दिए जाते हैं माथ.
हुए अठारह जो शहीद हैं, निद्रा में क्यों डाला मार?
मांग रहा उनका हिसाब है, देश आँख में भर अंगार.
बिलख रही उनकी विधवायें, कुपित आज है सारा देश,
दुश्मन का जब लहू गिरेगा, तभी धुलेगें उनके केश.
तुष्टीकरण पड़ेगा भारी, सेक्युलरों का कातिल साथ,
लाल तुम्हारा भी घर होगा, यदि बाँधे सेना के हाथ.
खाट पार्टी करना ऊपर, धरा रहेगा सारा ठाठ.
सत्ता है पर मोह व्यर्थ है, आखिर में पाओगें काठ.
रोड़ा बनते जो राहों में, नहीं देश से उनको प्यार,
पाकपरस्तों का फन कुचलो, आस्तीन के विषधर भार.
अभी समय है जागो सुधरो, अगर देश से करते प्यार,
टूट मनोबल कभी न पाए, गरजो करो शक्ति संचार.
कूटनीति को जानो समझो, पाक-नवाजों को दो कूट,
बाद नीतिगत बात करेंगे, दो सेना को खुलकर छूट.
छूट उन्हें भी जो 'बबलू' सम, बंद जेल में हैं खूंखार,
करो प्रशिक्षित पाक भेज दो, दाउद हाफिज बंटाधार.
दुश्मन मछली बनकर तड़पे, चटक-चटक फट जाएँ अंग,
कूटनीति के अंतर्गत ही, 'सन्धि सिन्धु-जल' कर दो भंग.
संयंत्रों को चिह्नित करके, दुश्मन को दो जमकर कष्ट,
तान तान ब्रह्मोस मिसाइल, नाभिकीय बम कर दो नष्ट.
वीर शिवाजी की पद्धति से, युद्ध करो बस छापामार,
पाकिस्तान मिटा दो जालिम, आतंकी हर डालो मार.
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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