खुलेआम सड़कों पे सबको धता दो
ये पर्दा है किससे हमें भी बता दो
सभी से है पंगा जो तीखे हैं तेवर
हो मासूम फिर भी छिपाती हो जेवर
खुली सिर्फ आँखें सभी कुछ ढका है
ज़माने का सिक्का नहीं चल सका है
ढका जो है चेहरा हमारी खता दो
ये पर्दा है किससे हमें भी बता दो
नहीं कोई फतवा न लागू है पहरा
उमस का ये मौसम झुलसता है चेहरा
सो पहचान खोकर लपेटा दुपट्टा
जमाने ने समझा है अंगूर खट्टा
हिफ़ाजत करे जो उसी का पता दो
ये पर्दा है किससे हमें भी बता दो
सभी देखते हैं अजब चाल इसकी
ज़रा हाल पूछा थी होठों पे सिसकी
तिहत्तर के खालू हमें घूरते हैं
छिहत्तर के चच्चा चरण चूमते हैं
यही नागवारी उन्हें भी जता दो
ये पर्दा है किससे हमें भी बता दो
--इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'
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