Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ऐसी आज होली हो

 

बजे कान्हा जी के संग, बांसुरी मृदंग चंग,
राधा जैसी हो उमंग, ऐसी आज होली हो.
रति संग हों अनंग, शंखपुष्पी बने भंग,
दूध-मेवा ब्राह्मी संग, ऐसी आज होली हो.
प्रमुदित अंग-अंग, झूमे मन हो विहंग,
नाचे गाये हो मलंग, ऐसी आज होली हो.
टेसू से ही खेलें रंग, मन में उठे तरंग,
प्रीति की उड़े पतंग. ऐसी आज होली हो..

 

 

(टेसू = होली खेलने हेतु रंग तैयार करने हेतु एक परम्परागत पुष्प जिसे यहाँ पर प्राकृतिक रंगों के पर्याय के रूप में प्रयुक्त किया गया है, वैसे पंक्ति में 'प्राकृतिक खेलें रंग' भी लिखा जा सकता था परन्तु टेसू की बात ही कुछ और है. वस्तुतः यह होली के रंग का एक मधुर अहसास है )
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कृपया निम्नलिखित कुरीतियों को हतोत्साहित करें!

 

 

 

'कैसी आज होली है'

नालियों के कीच संग, लिपे पुते सारे अंग,
देख देख दादा दंग, कैसी आज होली है.
दारू ले ले बने नंग, भूले भंग की तरंग,
पी पी बने हैं अपंग, कैसी आज होली है.
लहराते ज्यों भुजंग, लज्जित हुए अनंग,
मची लोफरी की जंग, कैसी आज होली है,
अजब हैं रंग-ढंग, छोरी-गोरी सभी तंग,
खोती जाती है उमंग, कैसी आज होली है..

 

 

 

रचनाकार : इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'

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