Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बचपन के दिन

 

टिमटिम तारेचंदा मामा,
माँ की थपकी मीठी लोरी|
सोंधी मिटटीचिडियों की बोली,
लगती प्यारी माँ से चोरी ||

सुबह की ओस सावन के झूले,
खिलती धूप में तितली पकड़ना|
माँ की घुड़की पिता का प्यार,
रोते रोते हँसने लगना ||

पल में रूठेपल में हँसते ,
अपने आप से बातें करना |
खेल खिलौने साथी संगी ,
इन सबसे पल भर में झगड़ना ||

लगता है वो प्यारा बचपन ,
शायद लौट के ना आए |
जहाँ उसे छोड़ा था हमने ,
वहीं पे हमको मिल जाए ||

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