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मैं तू और तेरे मेरे अहं को मिटा के यहाँ

 

इंजी. अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'


18 फ़रवरी  · 


 


घनाक्षरी

मैं तू और तेरे मेरे अहं को मिटा के यहाँ,
समझाया हमें सही कर दिया काम है।
 स्वप्न तो वो स्वप्न ही है छोड़ें मिलेगा यथार्थ,
लक्ष्य मिले वहीं हमें वही तो ही धाम है।
छल बल से हों खल त्यागें हम दलदल,
अंधकार से बचा ले उनका ही नाम है।
भ्रमजाल दूर किया सहज दिखाया मार्ग,
कोटि कोटि ऐसे गुरुदेव को प्रणाम है।

 --इंजी0 अम्बरीष श्रीवास्तव 'अम्बर'





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