Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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अब न कोई राज छिपे

 

अब न कोई राज छिपे
बहुत हो गयी आंखमिचौली
बहुत छकाया है तुमने,
बहुत झुलाया उड़नखटोला
बहुत दिखाए हैं सपने !
सांपसीढ़ी का खेल नहीं
अब फलक कभी, जमीं दिखाते
पल भर की बस झलक दिखा के
फिर पर्दों में छिप जाते !
अब तो अंतिम बेला आयी
आर-पार का युद्ध चले
मान मनौवल बहुत हो गया
अब ना कोई राज छिपे !
जो त्याज्य है जायेगा अब
सिहांसन खाली होगा
आकर वही विराजेगा जो
उपवन का माली होगा !

 

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