Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बहो, बस बहो

 

वीराने वन में, जलधार बन बहो
सोंधे सावन में, फुहार बन बहो !

उन्मुक्त पवन सँग, पत्तों से तुम तिरो
अनंत गगन में, विहंग से फिरो

विभक्त जगत में, सम्पूर्ण हो रहो
बहो, बस बहो !

बांधे न कोई तीर, ऐसी नाव तुम बहो
रोके न कोई राह, बने फकीर तुम बहो !

सिमटो न किसी तौर, निस्सीम हो रहो
रीते अधर में मुक्त, बस शून्य ही कहो

अनंत की हो चाह, अमरत्व ही गहो
बहो, बस बहो !

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ