Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चलो उगा दें चाँद प्रीत का

 

चलो झटक दें हर उस दुःख को

जो तुमसे मिलने में बाधक,

चाहो तो तुम्हें अर्पण कर दें

बन जाएँ अर्जुन से साधक !

चलो उगा दें चाँद प्रीत का

तुमसे ही जो करे प्रतिस्पर्धा

चाहो तो अंजुरी भर भर दें

भीतर उमग रही जो श्रद्धा !

चलो गिरा दें सभी आवरण

गोपी से हो जाएँ खाली

उर के भेद सब ही खोल दें

रास रचाएं संग वनमाली !

फिर उपजेगा मौन अनोखा

जिससे कम की मांग व्यर्थ है

प्रश्न सभी खो जायेंगे तब

आत्म मिलन का यही अर्थ है !

क्रांति घटेगी उगेगा सूरज

भीतर सोया जब जागेगा,

परम खींचता हर पल सबको

आत्म क्षितिज तब रंग जायेगा !

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