Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चतुर्द्शोऽध्यायः (अंतिम भाग)गुणत्रयविभागयोग

 

अर्जुन बोले हे केशव, क्या लक्षण हैं गुणातीत के गुणातीत कैसे हो कोई, कैसे हों आचरण उसके
सत्व गुण का कार्य प्रकाश है, प्रवृत्ति रजो गुण का जो प्रमाद को सदा बढाये, मोह है कार्य तमो गुण का
जो न चाहे इन तीनों को, न ही द्वेष करे इनसे साक्षी भाव में जो है रहता, गुणों को ही कारण समझे
आत्म भाव में रहता निशदिन, सुख-दुःख दोनों सम जिसको मिटटी, पत्थर, स्वर्ण एक से, निन्दा-स्तुति सम जिसको
जिसकी भक्ति है अखंड, अनन्य भाव से मुझको भजता तीनों गुणों से पार हुआ वह, मुझ ब्रह्म से आ मिलता
जो अविनाशी परब्रह्म है, मैं ही हूँ आश्रय उसका जो अखंड आनंद एकरस, है शाश्वत उस अमृत का

 

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