Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सप्तमोऽध्यायः ज्ञानविज्ञानयोग (अंतिम भाग)

 

बुद्धिहीन जन मुझे न जानें, अविनाशी जो परम ईश्वर
मनुज भाव से मुझे देखते, मैं हूँ मन-इन्द्रियों से पर
मैं अदृश्य बना रहता हूँ, योगमाया का ले आश्रय
मैं अजन्मा, अविनाशी हूँ, नहीं जानता जन समुदाय
चले गए जो अब भी हैं, त्तथा भविष्य में जो होंगे
मैं जानता सब भूतों को, अश्रद्धालु ये नहीं जानते
इच्छा और द्वेष उपजाते, सुख-दुःख आदि द्वंद्व जगत में
घने मोह से हो आवृत, अज्ञानी रहते व्याकुल से
किन्तु सदा है श्रेष्ठ आचरण, निष्कामी, द्वन्द्वातीत जो
इच्छाओं से मुक्त हुए नर, भजते हैं मुझ परमेश्वर को
आकर शरण में करें प्रार्थना, जरा, मरण से मुक्ति चाहें
वे ही जानते परम ब्रह्म को, अध्यात्म कर्मों को जानें

 

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