Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

हम एकाकी

 

जग में आते हम एकाकी
पल दो पल का संग यहाँ
जग से जाते हम एकाकी
कौन चला है संग वहाँ I

स्वयं का जब तक साथ न पाले
हर कोई एकाकी जग में
स्वयं की भीतर थाह न पाले
हर कोई प्यासा मग में I

प्रेम यदि पाया भीतर तो
सारी सृष्टि प्रेम लुटाती
स्वयं से जो न जुड़ पाया
पीड़ा मन की रहे लुटाती I

भीतर जाकर झोली भर ली
वही लुटा सकता आनंद
जिसके साथ सदा रब रहता
वही बहा सकता मकरंद I

स्वयं के साथ रहे जो अविरत
स्वयं से नाता जोड़ा जिसने
वही दूसरों से जुड़ सकता
स्वयं को मीत बनाया जिसने I


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ