Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जीवन चलते-चलते बीता

 

जीवन चलते-चलते बीता
थके कदम दो पल सुस्ता लें
कहीं न मिलती छांव,
जीवन चलते-चलते बीता
पाया नहीं पड़ाव !
काल शिकारी घात लगाये
बैठा लेकर दांव,
कब पासा सीधा पड़ जाये
थम जाएँ कब पांव !
क्या खोया क्या पाया हमने
कोई नहीं हिसाब,
जीवन भूलभुलैया या फिर
इक जादुई किताब !

 

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