भीतर भरा भंडार अनोखा
बाहर का सब फीका फीका
भीतर बहते अमृत सरवर
बाहर का जल फीका फीका
माना की यह जग सुंदर है
माया ही माया है सारी
पल भर का ही खेल जगत का
डूबी जिसमें बुद्धि हमारी
झूठे सिक्के हैं ये जग के
ज्यादा दिन न चल पायेगें
राज खुलेगा जब इस जग का
जाने के दिन आ जायेगें
वक्त रहे अमृत को पालें
त्याग तमस उजास उगा लें
मृत्यू ग्रसने आये पहले
खुद ही उससे हाथ मिला लें
जीवन छुपा ढूढें उस पार
खुलवाएं जो बंद है द्वार
हममें भी कुछ श्रेष्ट छिपा है
खुद से रखा नहीं सरोकार
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