Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

दीप की बाती-सी रात जली

 

तेरी-मेरी अँखियों की, पल-दो-पल मुलाकात चली ।
मैं जला, तू जली, दीप की बाती-सी रात जली ॥

हर नजर अब, तेरी नजर-सी, मुझे नजर क्यों आती है,
हर पहर-दोपहर सहर-सी मुझे नजर क्यों आती है,
साँसें हुईं रातरानी, लगे रात सुहागरात भली,
मैं जला, तू जली, दीप की बाती-सी रात जली ।

तू पतंग मेरी प्रीत –रीत की, पीछे-पीछे आऊँगा,
तुझे काट ले ना कोई मुझसे , मैं मंजा बन जाऊँगा,
अपने सीने में काँच घोंपकर, जिंदगी-ए-बर्बाद चली,
मैं जला, तू जली, दीप की बाती-सी रात जली ।

मुझे देखकर पाँव तेरे क्यों ज़मीं पे गड़ जाते हैं,
क्या माँगते बिछुए - महावर या हमसे शर्माते हैं,
टिकुली,नथुनी, झुमकी तो चुप हैं, पर कंगनों में ये बात चली,
मैं जला, तू जली, दीप की बाती-सी रात जली ।

दिल जलाकर के लिखते हैं, हम घने अँधियारों में,
आज भी मौजूद है ईमां, हम जैसे फनकारों में,
मैंने चाहा घर चाँद ले आऊँ, तारों की बारात चली,
मैं जला, तू जली, दीप की बाती-सी रात जली ।

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ