बाज़ार अब वहां नहीं होता
जहां सजती हैं दुकानें
रहते हैं क्रेता-विक्रेता
आज घर-घर सजी दुकानें
फेरीवालों, अख़बारों के
टीवी, इंटरनेट के
मोबाईल फोन के ज़रिए
बाज़ार घुसा चला आया
सबके दिलो-दिमाग़ में भी!
Powered by Froala Editor
बाज़ार अब वहां नहीं होता
जहां सजती हैं दुकानें
रहते हैं क्रेता-विक्रेता
आज घर-घर सजी दुकानें
फेरीवालों, अख़बारों के
टीवी, इंटरनेट के
मोबाईल फोन के ज़रिए
बाज़ार घुसा चला आया
सबके दिलो-दिमाग़ में भी!
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY