बेशक तुम नही बाँचोगे इन पंक्तियों को
बेशक तुम ऐसे जुते घोड़े हो जिसकी आँखों में पट्टियाँ बंधी हैं
बेशक तुम उतना ही सुनते हो जितना सुनने का तुम्हे हुक्म है
और महसूस करने का कोई जज्बा नही तुममे
और मुहब्बत करने वाला दिल नही है....
तुम इंसान नही एक रोबोट बना दिए गए हो
जिसपर अपना कोई बस नही
दूसरों के हुक्म सुनकर तुम दागते हो गोलियां
घोंपते खंज़र अपने भाइयों की गर्दनों पर
तुम्हारे शैतान आकाओं ने
आसमानी किताबों की पवित्र आयतों के तरजुमें
इस तरह तैयार किये हैं
कि कत्लो-गारत का ईनाम जन्नत-मुकाम है
ओ विध्वंस्कारियों
तिनका-तिनका जोड़कर
एक आशियाना बनाने का हुनर तुम क्या जानो
कब तक तुममे जिंदा रहेगा
आशियाने उजाड़कर खुश होने का भरम
क्या यही तुम्हारा मज़हब
क्या यही तुम्हारा धरम....
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अनवर सुहैल
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