Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बेशक तुम नही बाँचोगे इन पंक्तियों को

 

 

बेशक तुम नही बाँचोगे इन पंक्तियों को
बेशक तुम ऐसे जुते घोड़े हो जिसकी आँखों में पट्टियाँ बंधी हैं
बेशक तुम उतना ही सुनते हो जितना सुनने का तुम्हे हुक्म है
और महसूस करने का कोई जज्बा नही तुममे
और मुहब्बत करने वाला दिल नही है....

 

 

तुम इंसान नही एक रोबोट बना दिए गए हो
जिसपर अपना कोई बस नही
दूसरों के हुक्म सुनकर तुम दागते हो गोलियां
घोंपते खंज़र अपने भाइयों की गर्दनों पर
तुम्हारे शैतान आकाओं ने
आसमानी किताबों की पवित्र आयतों के तरजुमें
इस तरह तैयार किये हैं
कि कत्लो-गारत का ईनाम जन्नत-मुकाम है

 

 

ओ विध्वंस्कारियों
तिनका-तिनका जोड़कर
एक आशियाना बनाने का हुनर तुम क्या जानो
कब तक तुममे जिंदा रहेगा
आशियाने उजाड़कर खुश होने का भरम
क्या यही तुम्हारा मज़हब
क्या यही तुम्हारा धरम....

 

 

 

--
अनवर सुहैल

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ