शहर में आज फिर क्या हो गया है
हवा में कौन नफरत बो गया है
तिरी खुशबु समेटे बाजुओं में
मिऱा कमरा अकेला सो गया है
हज़ारों शख्स भागे जा रहा हैं
नहीं कुछ जानते क्या हो गया है
न जाने कौन सी बस्ती उधर है
न आना चाहता है, जो गया है
वो आया था घटा का भेस धरकर
गया तो आसमा भी धो गया है
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