Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शिकवा करोगे कब तक

 

 

शिकवा करोगे कब तक
बेजाँ रहोगे कब तक
माथे पे हाथ रख कर
रोते रहोगे कब तक
निकलो भी अब कुंए से
सोचा करोगे कब तक
ये खेल आग का है
डरते रहोगे कब तक
उटठो कि निकला सूरज
सोते रहोगे कब तक
शेरो-सुख़न में ‘अनवर’
सपने बुनोगे कब तक

 

अनवर सुहैल

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