हमें कुंद बच्चे पसंद नहीं
हमें चाहिए स्मार्ट बच्चे
जो हों सिर्फ अपने घर में
बाकी सारे बच्चे हों भांेदू
बच्चों को बना दिया हमने
अंक जुटाने की मशीन
सौ में सौ पाने के लिए
जुटे रहते हैं बच्चे
मां-बाप के अधूरे सपनों को
पूरा करने के चक्कर में
बच्चे कहां रह पाते हैं बच्चे!
वज़नदार किताबों के
दस प्वाइंट के अक्षरों से जूझते बच्चों को
इसीलिए लग जाता चश्मा
होता अक्सर सिर-दर्द!
बच्चे नहीं जानते
उन्हें क्या बनना है
मां-बाप, रिश्तेदार और पड़ोसी
दो ही विकल्प तो देते हैं
इंजीनियर या डाॅक्टर
बच्चा सोचता है
सभी बन जाएंगे इंजीनियर और डाॅक्टर
तो फिर कौन बनेगा शिक्षक,
गायक, चित्रकार या वैज्ञानिक
बच्चे चाहते ऊधम मचाना
लस्त हो जाने तक खेलना
चाहते कार्टून देखना
या फिर सुबह देर तक सोना
बच्चे नहीं चाहते जाना स्कूल
नहीं चाहते पढ़ना ट्यूशन
नहीं चाहते होमवर्क करना
तथाकथित स्मार्ट बच्चों ने
नहाया नहीं कभी झरने के नीचे
( इसमें रिस्क जो है )
तालाब किनारे कीचड़ में
लोटे नहीं स्मार्ट बच्चे
अमरूद चोरी कर खाने का
इन्हें अनुभव नहीं
स्मार्ट बच्चे सिर्फ पढ़ा करते हैं
स्मार्ट बच्चे गली-मुहल्ले में नहीं दिखा करते
स्मार्ट बच्चे टीचरों के दुलारे होते हैं
स्मार्ट बच्चों पर सभी गर्व करते हैं
शिक्षक, माता-पिता और नगरवासी!
बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती स्मार्ट बच्चों को
वही बच्चे जब बनते ओहदेदार
ओढ़ लेते लबादा देवत्व का
नहीं रह पाते आम आदमी
इस बाज़ारू-समाज में भला
कौन आम-आदमी बनने का विकल्प चुने?
कौन असुविधाओं को गले लगाए?
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