Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आज फिर कोई गजल तेरे नाम हो न जाए

 

 

आज फिर कोई गजल तेरे नाम हो न जाए
कहीं लिखते लिखते शाम हो न जाए
किया इंतज़ार तेरे इजहारे मोहबत का
यह ज़िंदगी कहीं यूँ ही तमाम हो न जाए
अब तो चारो पहर दिखाई देता है चेहरा तेरा
अब यह जनून कहीं सरेआम हो न जाए
एक मुदत से दिल के पास हो तुम
फिर कहीं यह दिल उदास हो न जाए
आज फिर कोई गजल तेरे नाम हो न जाए
किनारे की चाह लहरों को खींच लाती है
तुझे पाने की आस में कहीं कयामत अंजाम हो न जाए
उठेगे हाथ जब दुआ मांगने के लिए
तेरी ही तस्वीर को सलाम हो न जाए
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अंजु जायसवाल

 

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